Story Of Successful Entrepreneur Jaisingh Chavan, Disability Is Not A Weakness, Make Stronger -...



ख़बर सुनें





उस समय मेरी उम्र मात्र 18 माह की थी, जब चिकित्सकों की लापरवाही के चलते मैं पैरों, हाथ और गर्दन की दिव्यांगता का शिकार हुआ। बढ़ती उम्र के साथ मेरा भी विकास हुआ। सब बच्चों की तरह मेरा भी पालन-पोषण हुआ। पर उम्र के 18 वर्ष मैंने अपने घर की बंद चारदीवारी में ही बिताए। दिव्यांगता के चलते मुझे स्कूल जाने का मौका नहीं मिला।

पापा ने मेरे घर से बाहर निकालने पर भी रोक लगा दी थी, क्योंकि लोग मेरा उपनाम रखते थे, और मुझे देखकर भद्दे कमेंट कर चिढ़ाते थे। पापा को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था कि कोई उनके बच्चे को चिढ़ाए, या मैं कभी अपमानित व निराश महसूस करूं। मेरी बड़ी बहन व दो छोटे भाई स्कूल जाते थे। उन्हीं की किताबों से मैंने घर पर ही पढ़ाई जारी रखी। बाद में मैंने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से स्नातक किया। इस दौरान दर्जन भर से ज्यादा बार हुए ऑपरेशन के चलते मेरे हाथ और गर्दन की दिव्यांगता में सुधार आया।

इसी बीच हुई मेरे घर के पास ही म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता हो रही थी। किसी तरह पापा से छिपते हुए मैं भी उसमें हिस्सा लेने के लिए पहुंच गया। कार्यक्रम के आयोजकों ने जब मेरी शारीरिक दशा देखी, तो मना कर दिया, पर जब मैं बार-बार जिद करता रहा, तो एक पहचान वाले के दखल के बाद उसमें हिस्सा लेने का मौका मिल गया। प्रतियोगिता के दौरान मेरे घुटने और हाथ जख्मी हो गए, जिनसे खून बहने लगा। इसके बावजूद मैंने प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन किया और उसमें प्रथम स्थान प्राप्त किया।


इस घटना ने दिव्यांगता के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया। प्रतियोगिता के बाद मुझे आवेदन करने पर नागपुर, समाज कल्याण विभाग से एक तिपहिया साइकिल भेंट की गई। साइकिल मिलने के बाद मैं उससे नागपुर घूमने गया। मुझे लगने लगा कि मैं भी कुछ कर सकता हूं। चूंकि पापा से सीधे इस बारे में बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो मैंने जेब खर्च के लिए मिलने वाले पैसे बचाने शुरू कर दिए। कुछ ही महीने में मैंने करीब दो सौ रुपये इकट्ठा कर लिए।

इसके बाद मैं डिटर्जेंट पाउडर बनाने की योजना के तहत नागपुर जाकर सारा सामान ले आया। तब तक घर में किसी को पता नहीं था कि मैं क्या करने वाला हूं। मैंने डिटर्जेंट साबुन बनाकर अपनी तिपहिया साइकिल से तीस से पैंतीस किलोमीटर के क्षेत्र में घर-घर बेचना शुरू किया। जब ग्राहकों की प्रतिक्रिया अच्छी मिली तो एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाकर बीस हजार का कर्ज लिया और फैक्टरी खोली, जिसमें सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ था।

लेकिन दुर्भाग्यवश मेरी फैक्टरी में आग लग गई, जिसके चलते भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। चूंकि कंपनी के बीमा का नवीनीकरण नहीं हो पाया था, ऐसे में नुकसान की भरपाई भी नहीं मिली। पर मैं निराश नहीं हुआ। मेरे मन में कुछ ऐसा करने का विचार चल रहा था, जो कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद हो। इसके लिए मैंने नया उद्योग शुरू किया। इसमें औद्योगिक, ऑटोमोबाइल, ट्रांसफार्मर में उपयोग हो चुके तेल को संशोधन व पुनर्चक्रण के द्वारा दोबारा उपयोग करने लायक बनाया जाता है।

अब जब मेरे शरीर की दिव्यांगता कम होने के बजाय बढ़ रही है, मैं एक सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा ज्यादा काम करता हूं। मैं कुछ सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर दिव्यांगजनों को रोजगार दिलाने वाले प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करवाता हूं। इसके बाद उन्हें रोजगार दिलाने की व्यवस्था करता हूं। मेरा लक्ष्य है कि दिव्यांग किसी पर आश्रित होने के बजाय अपने पैरों पर खड़े हों। वे अपने को कमजोर न समझें, बल्कि काबिल बनें।



उस समय मेरी उम्र मात्र 18 माह की थी, जब चिकित्सकों की लापरवाही के चलते मैं पैरों, हाथ और गर्दन की दिव्यांगता का शिकार हुआ। बढ़ती उम्र के साथ मेरा भी विकास हुआ। सब बच्चों की तरह मेरा भी पालन-पोषण हुआ। पर उम्र के 18 वर्ष मैंने अपने घर की बंद चारदीवारी में ही बिताए। दिव्यांगता के चलते मुझे स्कूल जाने का मौका नहीं मिला।


पापा ने मेरे घर से बाहर निकालने पर भी रोक लगा दी थी, क्योंकि लोग मेरा उपनाम रखते थे, और मुझे देखकर भद्दे कमेंट कर चिढ़ाते थे। पापा को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था कि कोई उनके बच्चे को चिढ़ाए, या मैं कभी अपमानित व निराश महसूस करूं। मेरी बड़ी बहन व दो छोटे भाई स्कूल जाते थे। उन्हीं की किताबों से मैंने घर पर ही पढ़ाई जारी रखी। बाद में मैंने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से स्नातक किया। इस दौरान दर्जन भर से ज्यादा बार हुए ऑपरेशन के चलते मेरे हाथ और गर्दन की दिव्यांगता में सुधार आया।

इसी बीच हुई मेरे घर के पास ही म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता हो रही थी। किसी तरह पापा से छिपते हुए मैं भी उसमें हिस्सा लेने के लिए पहुंच गया। कार्यक्रम के आयोजकों ने जब मेरी शारीरिक दशा देखी, तो मना कर दिया, पर जब मैं बार-बार जिद करता रहा, तो एक पहचान वाले के दखल के बाद उसमें हिस्सा लेने का मौका मिल गया। प्रतियोगिता के दौरान मेरे घुटने और हाथ जख्मी हो गए, जिनसे खून बहने लगा। इसके बावजूद मैंने प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन किया और उसमें प्रथम स्थान प्राप्त किया।











Post a Comment

0 Comments