ख़बर सुनें
उस समय मेरी उम्र मात्र 18 माह की थी, जब चिकित्सकों की लापरवाही के चलते मैं पैरों, हाथ और गर्दन की दिव्यांगता का शिकार हुआ। बढ़ती उम्र के साथ मेरा भी विकास हुआ। सब बच्चों की तरह मेरा भी पालन-पोषण हुआ। पर उम्र के 18 वर्ष मैंने अपने घर की बंद चारदीवारी में ही बिताए। दिव्यांगता के चलते मुझे स्कूल जाने का मौका नहीं मिला।
पापा ने मेरे घर से बाहर निकालने पर भी रोक लगा दी थी, क्योंकि लोग मेरा उपनाम रखते थे, और मुझे देखकर भद्दे कमेंट कर चिढ़ाते थे। पापा को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था कि कोई उनके बच्चे को चिढ़ाए, या मैं कभी अपमानित व निराश महसूस करूं। मेरी बड़ी बहन व दो छोटे भाई स्कूल जाते थे। उन्हीं की किताबों से मैंने घर पर ही पढ़ाई जारी रखी। बाद में मैंने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से स्नातक किया। इस दौरान दर्जन भर से ज्यादा बार हुए ऑपरेशन के चलते मेरे हाथ और गर्दन की दिव्यांगता में सुधार आया।
पापा ने मेरे घर से बाहर निकालने पर भी रोक लगा दी थी, क्योंकि लोग मेरा उपनाम रखते थे, और मुझे देखकर भद्दे कमेंट कर चिढ़ाते थे। पापा को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था कि कोई उनके बच्चे को चिढ़ाए, या मैं कभी अपमानित व निराश महसूस करूं। मेरी बड़ी बहन व दो छोटे भाई स्कूल जाते थे। उन्हीं की किताबों से मैंने घर पर ही पढ़ाई जारी रखी। बाद में मैंने दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से स्नातक किया। इस दौरान दर्जन भर से ज्यादा बार हुए ऑपरेशन के चलते मेरे हाथ और गर्दन की दिव्यांगता में सुधार आया।
इसी बीच हुई मेरे घर के पास ही म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता हो रही थी। किसी तरह पापा से छिपते हुए मैं भी उसमें हिस्सा लेने के लिए पहुंच गया। कार्यक्रम के आयोजकों ने जब मेरी शारीरिक दशा देखी, तो मना कर दिया, पर जब मैं बार-बार जिद करता रहा, तो एक पहचान वाले के दखल के बाद उसमें हिस्सा लेने का मौका मिल गया। प्रतियोगिता के दौरान मेरे घुटने और हाथ जख्मी हो गए, जिनसे खून बहने लगा। इसके बावजूद मैंने प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन किया और उसमें प्रथम स्थान प्राप्त किया।
0 Comments