bharat chhodo andolan: भारत छोड़ो आंदोलन: जानें, कैसे...

नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated:

फाइल फोटोफाइल फोटो
77 साल पहले 'करो या मरो' के नारे के साथ महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन का प्रस्ताव पास किया गया। अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर करने में इस आंदोलन का बहुत बड़ा हाथ था।

बापू ने इस आंदोलन की शुरुआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन से की थी। अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने 4 जुलाई, 1942 को एक प्रस्‍ताव पारित किया था। शुरू में तो इस प्रस्‍ताव को लेकर पार्टी में काफी मतभेद थे। पार्टी नेता सी राजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ दी। मगर नेहरू और मौलाना आजाद ने बापू के आह्वान पर अंत तक इसके समर्थन का फैसला किया।



बापू ने दिया करो या मरो का नारा

महात्‍मा गांधी और उनके समर्थकों ने अंग्रेजी हुकूमत से स्‍पष्‍ट रूप से कह दिया कि वह द्वितीय विश्‍वयुद्ध के प्रयासों का तब तक समर्थन नहीं करेंगे जब तक भारत को पूरी तरह से आजादी नहीं मिल जाती। बापू ने करो या मरो के नारे के साथ सभी देशवासियों से अनुशासन बनाए रखने की भी अपील की।
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गांधी को कर दिया गया नजरबंद

आंदोलन की शुरुआत होते ही कांग्रेस वर्किंग कमैटी के सभी सदस्‍यों को गिरफ्तार कर लिया गया। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने कांग्रेस को गैर सरकारी संस्‍था भी घोषित कर दिया। यहां तक कि बापू को भी अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया गया।

अहिंसा के आंदोलन में मारे गए सैकड़ों

अहिंसा के इस आंदोलन में अंग्रेजी शासन की निर्ममता के चलते करीब 940 लोग मारे गए थे। वहीं 1630 घायल भी हुए थे। 60 हजार से अधिक कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी भी दी। अंग्रेजी हुकूमत के दस्तावेजों के मुताबिक अगस्त 1942 से दिसंबर 1942 तक पुलिस और सेना ने प्रदर्शनकारियों पर 538 बार गोलियां चलाईं।

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देश को एकजुट कर गया यह आंदोलन

भले ही बापू के इस आंदोलन को आंशिक रूप से ही सफलता मिली हो लेकिन इस आंदोलन ने पूरे देश को एकजुट कर दिया। 1943 के अंत तक सारा देश संगठित हो गया। अंत में हार मानकर ब्रिटिश सरकार ने संकेत दे दिया कि सत्ता हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सौंप दिया जाएगा। तब जाकर गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया। उसके बाद कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,000 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।



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