Nasa Survey Virus, Coronavirus, Cold Spring Harbour Laboratory Bio Archive Database, Global Warming -...



ख़बर सुनें





चीन में कोरोनावायरस के कारण दुनियाभर में हाहाकार मची हुई है। इसी बीच वैज्ञानिकों ने एक नया शोध जारी किया है, जो दुनिया के बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। वैज्ञानिकों ने तिब्बत में 15 हजार साल पुराने वायरस के समूह का पता लगाया है। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैब से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में वैज्ञानिकों को ग्लेशियर से पुराने वायरस मिले हैं। ये वायरस हजारों साल पुरानी बीमारियों को वापस ला सकते हैं।

साल 2015 में अमेरिका के वैज्ञानिकों की एक टीम तिब्बत पहुंची थी। टीम यह पता लगाना चाहती थी कि वहां ग्लेशियर के अंदर क्या है। उनके अध्ययन में चीन के उत्तर-पश्चिम तिब्बती पठार पर विशाल ग्लेशियर में 15 हजार साल से फंसे ऐसे वायरस खोजे गए हैं, जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैब से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि कैसे वैज्ञानिकों ने 28 ऐसे वायरस समूहों की खोज की है, जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया। 


वैज्ञानिकों का कहना है कि बर्फ में दबे होने की वजह से ये वायरस अलग-अलग तरह की जलवायु में भी जीवित रहे हैं। इसी के साथ उन्होंने यह चेतावनी भी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के पिघलते ग्लेशियरों के कारण इस तरह के वायरस दुनिया में फैलने का खतरा पैदा हो गया है। बर्फ में दबे होने की वजह से ये वायरस हजारों साल से जिंदा हैं, लेकिन बाहर नहीं आ पाए। 

वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे वायरस का इंसानों के संपर्क में आना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। ग्लेशियर के दो नमूनों का अध्ययन किया गया। एक ग्लेशियर का टुकड़ा साल 1992 में लिया गया था और दूसरा 2015 में। दोनों नमूनों को ठंडे कमरे में रखा गया था। शोध में बाहरी परत को हटाने के लिए इथेनॉल का इस्तेमाल किया गया, जबकि दूसरे को साफ पानी से धोया गया। दोनों ही नमूनों में 15 हजार साल पुराने वायरस के पाए गए।



क्या इन वायरसों से निपटन के लिए तैयार है दुनिया?


दुनिया के कई शोधकर्ता पहले भी जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता जता चुके हैं। इनके मुताबिक ग्लेशियरों में कई ऐसे वायरस दबे हो सकते हैं जो बीमारियां पैदा कर सकते हैं। ये ऐसे वायरस हैं जिनसे निपटने के लिए आधुनिक दुनिया तैयार नहीं है। 

अगर ये वायरस बाहरी दुनिया में संपर्क में आते हैं तो वे फिर से सक्रिय हो सकते हैं। शोधकर्ताओं की टीम ने ग्लेशियर के कोर तक जाने के लिए तिब्बत के ग्लेशियर पठारों को 50 मीटर (164 फीट) गहराई तक ड्रिल किया। नमूनों में रोगाणुओं की पहचान के लिए माइक्रोबायोलॉजी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। प्रयोग में 33 वायरस समूहों का पता चला, जिनमें 28 पुराने किस्म के वायरस थे। 

कोल्ड स्प्रिंग लैब के जर्नल 'बायोआर्काइव' में शोधकर्ताओं ने लिखा कि ग्लेशियर की बर्फ के अध्ययन के लिए अल्ट्रा क्लीन माइक्रोबियल और वायरल सैंपलिंग प्रक्रियाओं को स्थापित किया गया। वायरस की पहचान करने के लिए यह सबसे साफ प्रक्रिया है।


जलवायु परिवर्तन को लेकर विभिन्न मंचों से लगातार आवाज उठती रही है। लेकिन ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने में अब तक कोई कामयाबी नहीं मिली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अंटार्कटिका में ग्लेशियर काफी तेजी से पिघल रहे हैं। साल 1980 की तुलना में 2019 में ये प्रक्रिया छह गुना तेज हो चुकी है, जिसका प्रभाव कई समस्याओं को जन्म दे रहा है। जलवायु परिवर्तन को तिब्बती पठार को प्रभावित करने वाला माना जाता है और यह 1970 के बाद से अपनी एक चौथाई बर्फ खो चुका है। यदि इसे नहीं रोका गया तो शेष दो तिहाई ग्लेशियर सदी के अंत तक खो सकते हैं।

बर्फ से निकलकर दुनिया में आतंक मचा सकते हैं वायरस 


शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से अब इंसानों के लिए खतरनाक वायरस का खतरा पैदा हो गया है। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक में समुद्री बर्फ सितंबर में पूरी तरह से गायब हो सकती है। अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई, तो पर्यावरण की स्थिति और खराब हो जाएगी। ग्लेशियरों में दबे वायरस बर्फ से निकलकर दुनिया में आतंक मचा सकते हैं।

अंटार्कटिका : बढ़ सकता है समुद्री जलस्तर 


ऐसा माना जा रहा है कि पश्चिमी अंटार्कटिका का एक हिस्सा 'थ्वेट्स ग्लेशियर' भविष्य में समुद्र के बढ़ते जल स्तर के लिए सबसे बड़ा खतरा है। नासा के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अगर यह टूटकर समुद्र में बहता है, तो समुद्री जलस्तर में 50 सेंटीमीटर का इजाफा हो सकता है।


चिली का ग्रे ग्लेशियर पटागोनियन आईसफील्ड्स में है जो अंटार्कटिका के बाहर दक्षिणी गोलार्ध के सबसे बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इससे वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसे दूसरे ग्लेशियर के बारे में समझने में सहायता मिलेगी। शोधकर्ता इस क्षेत्र में बर्फ पिघलने का नजदीकी से अध्ययन कर रहे हैं। 


दो तिहाई अल्पाइन ग्लेशियर पिघलने का खतरा


स्विट्जरलैंड में रोन ग्लेशियर रोन नदी का स्रोत है। कई वर्षों से वैज्ञानिक यूवी रेसिस्टेंट वाले सफेद कंबल से गर्मियों के समय में इसे ढक रहे हैं, ताकि यह कम पिघले। शोधकर्ता कहते हैं कि गर्म होते जलवायु की वजह से इस सदी के अंत तक अल्पाइन ग्लेशियरों का दो तिहाई हिस्सा पिघल सकता है।


ग्लेशियर का क्षेत्र बढ़ने के बावजूद चिंता


जैकब्शेवन ग्रीनलैंड का सबसे बड़ा ग्लेशियर है। नासा द्वारा किए गए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि यह बढ़ रहा है। साल 2016 के बाद ग्लेशियर का एक हिस्सा जहां थोड़ा मोटा हो गया है, वहीं दूसरा हिस्सा तेजी से पिघल रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आसामान्य रूप से ठंडे पानी के बहाव के कारण ग्लेशियर में वृद्धि आई है।


100 गुना तेजी से पिघल रही बर्फ


अलास्का में हजारों की संख्या में ग्लेशियर हैं। साल 2019 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि वैज्ञानिकों के अनुमान से 100 गुना तेजी से यहां की बर्फ पिघल रही है। वाल्देज ग्लेशियर झील पर कयाकिंग के बाद दो जर्मन और एक ऑस्ट्रियाई नागरिक मृत पाए गए थे।



चीन में कोरोनावायरस के कारण दुनियाभर में हाहाकार मची हुई है। इसी बीच वैज्ञानिकों ने एक नया शोध जारी किया है, जो दुनिया के बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। वैज्ञानिकों ने तिब्बत में 15 हजार साल पुराने वायरस के समूह का पता लगाया है। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैब से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में वैज्ञानिकों को ग्लेशियर से पुराने वायरस मिले हैं। ये वायरस हजारों साल पुरानी बीमारियों को वापस ला सकते हैं।


साल 2015 में अमेरिका के वैज्ञानिकों की एक टीम तिब्बत पहुंची थी। टीम यह पता लगाना चाहती थी कि वहां ग्लेशियर के अंदर क्या है। उनके अध्ययन में चीन के उत्तर-पश्चिम तिब्बती पठार पर विशाल ग्लेशियर में 15 हजार साल से फंसे ऐसे वायरस खोजे गए हैं, जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया। कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैब से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि कैसे वैज्ञानिकों ने 28 ऐसे वायरस समूहों की खोज की है, जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया। 








आगे पढ़ें

कैसे जिंदा हैं, हजारों साल पुराने वायरस 










Post a Comment

0 Comments