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Web Title:some animals which were used in military missions as spy or other purpose

(Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)

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जंगी और जासूस जानवर, कारनामे ऐसे कि आप भी करेंगे सलाम

नार्वे में एक मछुआरे ने एक वेल मछली देखी। वेल के गले में रूस का बना एक पट्टा बंधा हुआ था और ऐसा लग रहा था कि उसमें कैमरा लगा हुआ है। इससे रूसी नौसेना पर वेल को जासूसी के लिए इस्तेमाल करने का शक पैदा हुआ। वैसे अगर यह सही है तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले कई सैन्य अभियानों में जासूस के तौर पर या फिर किसी और काम के लिए जानवरों का इस्तेमाल हो चुका है। आइए आज जानते हैं ऐसे ही कुछ जानवरों की रोचक कहानियां...

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​सीगल और पनडुब्बियां

​सीगल और पनडुब्बियां

ब्रिटिश नौसेना ने पहले विश्व युद्ध के दौरान सीगल की मदद ली थी। सीगल ने इंग्लिश चैनल में जर्मनी की पनडुब्बियों का पता लगाने में सहयोग किया। परीक्षण के दौरान ब्रिटेन ने अपनी पनडुब्बियों को भेजा। ये पनडुब्बियां पानी की सतह पर खाना गिराती थीं। सीगल खाने को देखकर पनडुब्बियों का पीछा करता था।

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​कबूतरों का मिसाइल में इस्तेमाल

​कबूतरों का मिसाइल में इस्तेमाल

1943 में अमेरिकी थलसेना ने मनोचिकित्सक बी.एफ.स्किनर को एक टेस्ट की मंजूरी दी। स्किनर ने नाजियों के लक्ष्यों को भेजने के लिए एक ऐसी मिसाइल बनाने का विचार रखा था जिसे कबूतर हैंडल करता। परीक्षण के दौरान हवा से जमीन पर मार करने वाली पेलिकन मिसाइलों के अंदर एक केस में कबूतर को रख दिया गया। मिसाइल के अंदर एक खिड़की थी ताकि बाहर की ओर कबूतर देख सके। कबूतर को उचित दिशा में अपने सिरा को घुमाकर एक कंट्रोल सिस्टम को ऑपरेट करने का प्रशिक्षण दिया गया। वैसे यह परियोजना सफल रही थी लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं किया गया।







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​डॉल्फिन

​डॉल्फिन

बोतल जैसे नाक वाली डॉल्फिन समुद्र में बारूदी सुरंगों का पता लगा सकती है। समुद्र में पानी के अंदर पाई जानी वाली बारूदी सुरंगें जहाजों के लिए काफी खतरनाक होती हैं। इन सुरंगों का पता लगाने और निष्क्रिय करने के लिए अमेरिकी नौसेना ने डॉल्फिन की मदद ली। रूसी नौसेना में 'मिलिट्री डॉल्फिन' का एक सेंटर था। ये डॉल्फिन समुद्र में पानी के काफी नीचे तक जातीं और कथित रूप से विदेशी जहाजों में लगी बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय कर देतीं।

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​चमगादड़

​चमगादड़

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी थलसेना ने बहुत खतरनाक योजना बनाई। जापान के कुछ टारगेट पर टाइम बम गिराने के लिए चमगादड़ों के इस्तेमाल का फैसला किया। इन चमगादड़ों को टारगेट एरिया की इमारतों में भेजा जाता और उसके बाद टाइम बम फट जाता। लेकिन इस परियोजना पर काम हुआ नहीं।

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​बिल्ली का इस्तेमाल

​बिल्ली का इस्तेमाल

यह उन दिनों की बात है जब शीत युद्ध चरम पर था। अमेरिका क्रेमिलन और सोवियत दूतावासों की जासूसी की सोच रहा था। इसके लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने बिल्ली का इस्तेमाल करनी की योजना बनाई। योजना के मुताबिक, बिल्लियों के कान में माइक्रोफोन और खोपड़ी के अंदर रेडियो ट्रांसमिटर लगाना था। प्रयोग के तौर पर एक बिल्ली को वॉशिंगटन डीसी स्थित एक सोवियत परिसर में जाने के लिए छोड़ा गया। लेकिन दुर्भाग्य से एक टैक्सी के नीचे कुचलकर उसकी मौत हो गई। उसके बाद सीआईए ने अपनी इस परियोजना को टाल दिया।

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​सील

​सील

सील बड़े काम का जानवर है। यह कम रोशनी में भी देख सकता है और पानी के अंदर सुन सकता है। अमेरिकी नौसेना ने इनका काफी इस्तेमाल किया। बंदरगाहों पर दुश्मन द्वारा छिपाए गए सामानों या समुद्र में अन्य उपकरणों का पता लगाने में इसने मदद की। सील ने अनाधिकृत तैराकों और गोताखोरों को भी देखने और पकड़ने में मदद की।

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​चिकन का इस्तेमाल

​चिकन का इस्तेमाल

जहरीली गैसों का पता लगाने के लिए अमेरिका ने पहले खाड़ी युद्ध में मुर्गियों का इस्तेमाल करने की सोचा। इस परियोजना का नाम रखा गया पोल्ट्री केमिकल कन्फर्मेशन डिवाइस। लेकिन यह उपाय कारगर साबित नहीं हुआ क्योंकि कुवैत पहुंचने के एक हफ्ते के अंदर ही ज्यादातर मुर्गियां मर गईं।

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​वोजटेक

​वोजटेक

सीरिया मूल के इस भालू ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड की सेना की काफी मदद की। ईरान की एक कंपनी से उसे खरीदा गया था। पोलैंड की सेना में उसे प्राइवेट सैनिक के तौर पर शामिल किया गया। इराक, फिलिस्तीन, मिस्र और इटली में युद्ध के दौरान इस भालू ने अहम भूमिका निभाई। 1944 में वोजटेक ने इटली के मोन्टे कैसिनो स्थित अपनी यूनिट को बड़ी मात्रा में गोलाबारूद पहुंचाए।

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​लिन वैंग

​लिन वैंग

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के खिलाफ युद्ध में चीन का इस हाथी ने बहुत साथ दिया था। लिन वैंग को एक जापानी शिविर से अन्य 12 हाथियों के साथ जब्त किया गया था। बाद में उसका इस्तेमाल सैनिकों तक रसद पहुंचाने के लिए किया गया। 1945 में लिन वैंग बर्मा होते हुए चीन पहुंचा जहां उसने युद्ध के शहीदों के लिए एक स्मारक बनाने में मदद की। 1952 में इस हाथी को ताइपेई चिड़ियाघर को सौंप दिया गया। वहां यह आने वाले कई दशकों तक जिंदा रहा और बड़ी संख्या में लोग उसे देखने के लिए आते थे।









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