नाहर के पिता बशीर अहमद मजदूरी करते हैं. घर टूटा-फूटा है. लेकिन उन्होंने अपने दिव्यांग बेटे की पढ़ाई नहीं रोकी. उसे पढ़ने का शौक है इसलिए जो बन पड़ा वो किया. जबकि मेवात में पढ़ाई-लिखाई का ज्यादा माहौल नहीं है. साक्षरता दर सिर्फ 54.08 परसेंट है. नाहर ने बताया कि 2004 में उसे करंट लग गया था. अलवर और जयपुर में ईलाज करवाया गया. लेकिन हाथ नहीं बचाया जा सका. मजबूरन दोनों हाथ काटने पड़े. एक कान खराब हो गया. बाएं पैर की चार उंगलियां काट दी गईं. उसे ठीक होने में करीब तीन साल लगे. अब उसे जिंदगी में जो भी हासिल करना है, उसके लिए दायां पैर ही सहारा है. वो छह बहन-भाइयों में सबसे छोटा है.
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नाहर खान के पिता करते हैं मजदूरीपांच किमी पैदल चलकर जाता है स्कूल
लेकिन नाहर को पढ़ने का शौक था. वह पढ़ते-पढ़ते दसवीं में पहुंच गया. बोर्ड की परीक्षा कठिन थी, इसलिए खूब मेहनत की और 500 में से 385 नंबर लेकर ऐसे लोगों के लिए मिसाल बन गया जो सुविधाओं का रोना रोते हैं. नाहर मांडीखेड़ा के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में पढ़ता है जो उसके गांव खेडीखुर्द से करीब पांच किलोमीटर दूर है. वो वहां तक पैदल चल कर पढ़ने जाता है. स्कूल में उसकी 100 परसेंट हाजिरी बताती है कि उसमें पढ़ने की कितनी ललक है. उसका सपना उच्च शिक्षा हासिल करने का है.
नाहर के पिता बशीर अहमद ने बताया कि परिवार के पालन-पोषण करने लिए उनके पास मजदूरी के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है. जो मजदूरी से मिलता है उससे परिवार चलता है. उसे रोज हम अपने हाथ से खाना खिलाते हैं. मुझे खुशी है कि मेरे बेटे ने मेवात का नाम रोशन किया.
...ताकि आसान हो जिंदगीसमाजसेवी राजुद्दीन जंग ने बताया कि नाहर 18 साल का हुआ है. उसका दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाया गया है. अगले महीने पेंशन के लिए फाइल जमा होगी. एक-दो महीनों में पेंशन मिलनी शुरू हो जाएगी. जंग के मुताबिक उसके पिता बशीर अहमद की उम्र 60 वर्ष हो चुकी है. कोशिश ये है कि उन्हें बुढ़ापा पेंशन मिले. घर में बहुत तंगी है इसलिए कुछ सरकारी योजनाओं का लाभ मिल जाए तो गुजर-बसर करने में आसानी हो जाएगी.
अपने घर में नाहर
नाहर पर स्कूल को है नाज
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मांडीखेड़ा के प्राचार्य करण सिंह ने बताया कि उनके स्कूल में 245 बच्चों ने दसवीं की परीक्षा दी थी. जिनमें से 148 पास हुए हैं. ऐसे हालात में नाहर ने 77 फीसदी लेकर मेवात-हरियाणा में स्कूल का नाम रोशन किया.
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